रहस्य बने हुए हैं आज भी ये दानव.. हकीकत या कहानी?


माना जाता है की महा मानव, दानव, दैत्य सिर्फ कहानियों में होते हैं, लेकिन कुछ लोगों का दावा है की ये सब हकीकत होते है, और उनका ये कहना सिर्फ तर्क नहीं है, उनके पास इन सब के सबूत भी हैं। अब इन बातों मे कितनी सच्चाई है ये तो वो ही जाने लेकिन आइए बताते हैं कुछ दानवों के बारे में जिनके होने का दाना आज भी किया जाता है।

Skunk Ape
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एक अनाम महिला ने फ्लोरिडा के सारासोटा शेरिफ विभाग को इन तस्वीरों को भेजा था। तस्वीरों में उनके साथ इस अजीब से बंदर की तरह दिखने वाले प्राणी को दिखायी दे रहा हैं। महिला ने बताया की उस प्राणी ने घर के पिछवाड़े रखी एक टोकरी से सेब ऊठाया और चला गया। वह जानवर एक वनमानुष के जैसे लग रहा था। लेकिन ये बात अभी तक एक रहस्य ही बनी हुई है की क्या वह सच में एक वनमानुष ही था।

Sea Serpent
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यह तस्वीर पहली बार रॉबर्ट ले, जो की एक पेशेवर फोटोग्राफर हैं, उनके द्वारा ली गई थी जिसे 1965 में एक ऑस्ट्रेलियाई पत्रिका ने प्रस्तुत किया था। रॉबर्ट का कहना था की ये एक समुद्री सांप की वास्तविक तस्वीर थी। उन्होंने इस अजीब प्राणी की तस्वीर ली, और साथ ही उस परिवार के बारे में भी बताया जो इस जीव के साथ थे। यह परिवार के ग्रेट बैरियर रीफ के पास छुट्टियां मनाने गया था। जब इस फोटो को लिया गया था परिवार के सदस्य इस विशाल (कथित तौर पर 75-85 फुट लंबा) सांप के जैसे दिखने वाले जीव के पास ही थे।

the big foot
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रिक जैकब ने संयुक्त राज्य अमेरिका के पेंसिल्वेनिया क्षेत्र में यह तस्वीर ली। कई लोग इसे एक अज्ञात बंदर की एक तस्वीर बताते हैं, जो की थोड़ा अजीब था। लोगो का कहना हैं की ये एक झूठी तस्वीर हैं, लेकिन बिगफुट समर्थकों का कहना है की इस तरह के जानवर आज भी उत्तरी अमेरिका के जंगल में पाए जाते हैं।

Loch Ness Monster
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लॉक नेस दानव (अंग्रेज़ी: Loch Ness Monster) एक पानी में रहने वाला दानव है जिसकी केवल दंत कथाओं में पुष्टी की गई है। आज तक इसके दिखने की केवल कहानियां ही पाई गई है पर कोई पुख्ता सबुत नहीं मिले है। इस दानव के स्कॉटलैंड के लॉक नेस इलाके में निवास करने की कहानियां मिलती है।
इसका एक मात्र चित्र “सर्जन्स फ़ोटोग्राफ़” है जिसे 1934 में खिंचा गया था। इस दानव को लेकर काफ़ी शोध कार्य हुआ है परन्तू आज तक इसके असली होने की साफ़ पुष्टी नहीं की गई है। कईं विद्वनों के अनुसार यह लुप्त हो चुके डायनासोर की प्रजाती पेलेसिओसॉरस का है। इन सब के बावजूद यह आज भी शोधकर्ताओं के अाश्चर्य का करण है और कई लोगों व यात्रियों को लॉक नेस आने के लिए आकर्षित करता है।

GIANT BAT MYSTERY
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बील को यह तस्वीर उनके दोस्त सलीम मुशर्फ ने मैल की थी ये पता लगाने के लिए की ये तस्वीर सच्ची है या झुठी, जब इन सब चिजों के विशेज्ञ बील ने पता करने की कोशिश की तो वो हैरान हो गए, क्योंकि उन्होनें भी कभी इतना बड़ा चमगादड़ नही देखा था। लेकिन बील का दावा है की ये तस्वीर झूठी हैम अब ये तो हम भी नही जानते की आखिर सच्चाई कितनी हैं इस तस्वीर में।

हिममानव (अबोमिनेबल स्नोमैन)
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एक पौराणिक प्राणी और एक वानर जैसा क्रिप्टिड है जो कथित तौर पर नेपाल और तिब्बत के हिमालयक्षेत्र में निवास करता है। यति और मेह-तेह नामों का उपयोग आम तौर पर क्षेत्र के मूल निवासी करते हैं,[1] और यह उनके इतिहास एवं पौराणिक कथाओं का हिस्सा है। यति की कहानियों का उद्भव सबसे पहले 19वीं सदी में पश्चिमी लोकप्रिय संस्कृति के एक पहलू के रूप में हुआ।
वैज्ञानिक समुदाय अधिकांश तौर पर साक्ष्य के अभाव को देखते हुए यति को एक किंवदंती के रूप में महत्व देते हैं, फिर भी यह क्रिप्टोज़ूलॉजी के सबसे प्रसिद्ध प्राणियों में से एक के रूप में कायम है। यति को उत्तरी अमेरिका के बिगफुट किंवदंती की तरह का ही एक प्रकार माना जा सकता है।

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इस तस्वीर को लेकर भी रहस्य बना हुआ है, कई लोगो ने जिन्होंने इसे देखा था उनका कहना हैं की ये बकरी के जैसे दिखने वाला मानव उन्होंने देखा था, और उनका दावा भी है की ये वैज्ञानिको के किसी गलत अाविष्कार का नतीजा हैं, जिसमें वो मानव और बकरी पर साथ में कुछ प्रयोग कर रहे थे।

इन मणियों को पाकर इंसान बदल सकता है अपनी किस्मत!


फिल्मों में अक्सर आपने मणियों से जुड़ी कई कहानियां सुनी होगी। समुंद्र मंथन , महाभारत और पुराणों में भी मणि का जिक्र हो चुका है। यही वजह है कि सदियों से लोग ये मणि पाना चाहते हैं। लेकिन आज तक किसी को भी मणि नही मिल सकी है। जानिए उन मणियों के बारे में जिसे पाकर इंसान अपनी किस्मत बदल सकता है।

पारस मणि

6682991551_28260aa0a9_bपारस मणि से जुड़ो हजारों किस्से और कहानियां आज भी प्रचलित हैं। कई लोगों ने पारस मणि को देखने का दावा भी किया है। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में के दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है। लोगों का मानना है कि कुएं में पारस मणि है।

नील मणि

neelanm-650x433नीलमणि आज एक रहस्य है। कहा जाता है जिस भी इंसान के पास अगर यह मणि होती है, उसे जीवन में भूमि, भवन, वाहन और राजपद का सुख होता है। असली नीलमणि या नीलम से नीली या बैंगनी रोशनी निकली है, जो दूर तक फैल जाती है।  कहते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में असली ‘नीलमणि’ रखी हुई है।

नाग मणि

Mani-702x336कहते हैं भगवान शेषनाग नाममणि धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण का भी इसी तरह के एक नाग से सामना हुआ था।

कौस्तुभ मणि

indexकौस्तुभ मणि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। पुराणों के अनुसार यह मणि समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 मूल्यवान रत्नों में से एक थी। यह बहुत ही कांतिमान मणि है। यह मणि जहां भी होती है, वहां किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती। यह मणि हर तरह के संकटों से रक्षा करती है। माना जाता है कि समुद्र के तल या पाताल में आज भी यह मणि पाई जाती है।

चंद्रकांत मणि

chandrakant-maniचंद्रकांत मणि जिसे मिल जाए उसके भाग्य में वृद्धि होती है। गंभीर दुर्घटनाओं से बचा जा सकता, उसका जीवन किसी चमत्कार की तरह पलट जाता है। उसकी हर तरह की इच्छालएं पूर्ण होने लगती हैं। कहते हैं कि झारखंड के बैजनाथ मंदिर में चंद्रकांता मणि है।

उलूक मणि

paras stone 2उलूक मणि के बारे में ऐसी कहावत है कि यह मणि उल्लू पक्षी के घोंसले में पाई जाती है। हालांकि अभी तक इसे किसी ने देखा नहीं है। माना जाता है कि इसका रंग मटमैला होता है। यह किंवदंती है कि किसी अंधे व्यक्ति को यदि घोर अंधकार में ले जाकर द्वीप प्रज्वलित कर उसकी आंख से इस मणि को लगा दें तो उसे दिखाई देने लगता है। दरअसल यह नेत्र ज्योति बढ़ाने में लाभदायक है।

अद्भुत कनिपक्कम गणपति मंदिर यहां लगातार बढ़ रहा है मूर्ति का आकार


भारत में कई मंदिर है जो अपने चमत्कारों को लेकर प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक मंदिर है आंध्र प्रदेश स्थित कनिपकम विनायक मंदिर। वैसे देश में अनेकों ऐसे गणेश मंदिर हैं जो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन यह मंदिर बाकि सब मंदिरों से अपने आप में अनूठा है क्योंकि, एक तो ये विशाल मंदिर नदी के बीचों बीच स्थित है और दूसरा यहां स्थित गणपति की मूर्ति का आकार लगातार बढ़ रहा है। आस्था और चमत्कार की ढेरों कहानियां खुद में समेटे हुए है कनिपक्कम विनायक का ये मंदिर।
भगवान श्री गणेश का ये मंदिर भारत के दक्षिणी प्रांत आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। इसका निर्माण चोल वंश ने 11 शताब्दी में करवाया था। इसके बाद विजयनगर के शासकों ने वर्ष 1336 में इसका विस्तार किया।
मंदिर के बनने की कहानी भी बेहद रोचक है कहा जाता है कि तीन भाई थे। उनमें से एक गूंगा, दूसरा बहरा और तीसरा अंधा था। तीनों ने मिलकर अपने जीवन व्यापन के लिए जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा। जमीन पर खेती के लिए पानी की जरुरत थी। इसलिए तीनों ने उस कुंए को खोदना शुरू किया जो सूख चुका था। काफी खोदने के बाद पानी निकला।
उसके बाद थोड़ा और खोदने पर एक पत्थर दिखाई दिया। जिसे हटाने पर खून की धारा निकलने लगी। थोड़ी ही देर में पूरे कुंए का पानी लाल हो गया। यह चमत्कार होते ही तीनों भाई जो कि गूंगे, बेहरे या अंधे थे वे एकदम ठीक हो गए। जब ये खबर उस गांव में रहने वाले लोगों तक पहुंची तो वे सभी यह चमत्कार देखने के लिए एकत्रित होने लगे। तभी सभी को वहां प्रकट स्वयं भू गणेशजी की मूर्ति दिखाई दी, जिसे वहीं पानी के बीच ही स्थापित किया गया।
कुएं के पानी की लहर में से अपने आप प्रकट हुई इस गणेश भगवान की मूर्ति को भक्तों ने स्वयंभू विनायक का नाम दिया। आज भी उस दिव्य कुएं में हर मौसम, हर परिस्थिति में पानी रहता है। बारिश के दिनों में तो पानी कुएं में से बाहर भी बहता है।
कहते हैं कि इस मंदिर में मौजूद विनायक की मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस बात से आपको भी हैरानी हो रही होगी, लेकिन यहां के लोगों का मानना है कि प्रतिदिन गणपति की ये मूर्ति अपना आकार बढ़ा रही है।
इस बात का प्रमाण उनका पेट और घुटना है, जो बड़ा आकार लेता जा रहा है। कहा जाता है कि विनायक की एक भक्त ने उन्हें एक कवच भेंट किया था, लेकिन प्रतिमा का आकार बढऩे की वजह से अब उसे पहनाना मुश्किल हो गया है।
करीब 50 साल पहले एक भक्त ने इस मूर्ति के नाप का ब्रेसलेट दान किया था, जो पहले इस मूर्ति के हाथ में सही आता था। लेकिन अब वह ब्रेसलेट मूर्ति के हाथ में नहीं आता।
कनिपकम विनायक की यह मूर्ति, दो पक्षों के झगड़े भी सुलझाती है। इस मूर्ति के पास कुएं की ओर मुंह कर विनायक की शपथ लेकर लोग आपसी मसलों को हल करते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यहां ली गई शपथ किसी भी कानून या न्याय से बड़ी है।
Synopsis
1000 YEARS old Magnificient and Mysterious Growing LORD. The presiding deity of Kanipakam is the all pervading power who casts a spell of divinity, purity and curative power. The silver armour which was quite ‘fit’ when it was donated in the year 1945 could not fit the idol as it was evident that the idol of Lord Vinayaka is gradually growing in its size and dimensions says Chandramouli Gurukkal, the eleventh successor of the chief priests.

दुनिया की सबसे खतरनाक सड़क, यहां एक छोटी-सी चूक का मतलब है मौत



रोमांचक सफर पर ड्राइविंग करना आखिर किसे पसंद नहीं होता, लेकिन आप को ड्राइविंग के लिए ऐसी जगह पर भेजा जाए जहां की सड़कों पर एक तरफ कूंआ तो दूसरी तरफ खाई जैसे हालात हों तो शायद आप नहीं जाना चाहेंगे।
दरअसल दुनिया में कुछ ऐसी सड़के हैं जहां ड्राइविंग करना कोई बच्चों का खेल नहीं है, क्योंकि इन रास्तों पर हर पल मौत के साथ खेलना पड़ता है। इसके बावजूद ऐसी सड़कों पर लोगों का आना-जाना बना रहता है।
ऐसी ही एक सड़क बोलिविया के युंगास प्रांत में है, जिसे ‘द रोड ऑफ डेथ’ के नाम से जाना जाता है। इसे दुनिया की सबसे खतरनाक रोड का दर्जा मिला है। बोलिवियन एंडीज में स्थित इस सड़क की लंबाई 64 किलोमीटर है, जो गंदी होने के साथ-साथ फिसलन से भरी है। इस कारण से ड्राइविंग के दौरान गाड़ियों के टायर नीचे खाई की ओर स्लिप करते हैं।
वहीं इसकी ढलानें संकरी और खतरनाक हैं। कई जगह ऐसी स्थिति है जहां दो कारें अगल-बगल से क्रॉस भी नहीं कर सकतीं। इस सड़क पर ड्राइविंग करने और इससे गुज़रने वाले लोगों की सांसें हलक में अटकी रहती हैं।
यहां गाड़ी को घुमाना बहुत ही मुश्किल है। सड़क के किनारे रेलिंग भी नहीं है। ऐसे में यहां पर ज़रा-सी चूक का मतलब मौत है। बेहतर से बेहतर ड्राइवर भी अपने रिस्क पर ही इस रोड पर सफर करता है। हालांकि ये सड़क कितनी खतरनाक है इसे शब्दों और फोटो के ज़रिए भी बता पाना आसान नहीं है।
कई बार तो गाड़ियों का एक टायर नीचे लटक जाता है, ऐसे में सावधानी से उसे बाहर निकालना पड़ता है। कई गाड़ियां तो सैकड़ों फिट नीचे गिर जाती हैं। इस सड़क पर हर साल लगभग 300 लोगों की मौत हो जाती है। बता दें कि ये सड़क समुद्र तल से 15,400 फीट की ऊंचाई पर है। जहां आम लोग इस सड़क पर जाने से डरते हैं वही खतरों से दो-दो हाथ करने वाले एडवेंचरर्स राइडर्स की यह पसंदीदा जगह है।
वैसे बता दें अभी तक दुनिया की सबसे खतरनाक रोड के रूप में बोलिविया की डेथ रोड को जाना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हाल ही में किए गए एक रिसर्च के आधार पर dangerousroads.org वेबसाइट ने तुर्की के बेबर्ट डी915 रोड को सबसे डेंजरस माना है।
तुर्की की ये सड़क 106 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है, जो 6 हज़ार फीट ऊंची सोगान्ली माउंटेन पर बनी है। इसे 1916 में रूसी सैनिकों द्वारा बनाया गया था। इसका उपयोग ज्यादातर आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोग ही करते हैं। ठंड में बर्फ़बारी की वजह से इसे बंद कर दिया जाता है।

Synopsis
It begins at 15,400 feet and for an estimated 300 people a year ends in the loss of their life, yet Bolivia's North Yungus Road - better known as 'The Death Road' - is among the nation's biggest drawcards for thrill-seeking tourists.

हनुमान जी ने भी किया था विवाह, यहां है हनुमान और उनकी पत्नी का मंदिर



संकट मोचन हनुमान जी के ब्रह्मचारी रूप से तो सभी परिचित हैं। उन्हें बाल ब्रह्मचारी भी कहा जाता है। लेकिन क्या अपने कभी सुना है की हनुमान जी का विवाह भी हुआ था? और उनका उनकी पत्नी के साथ एक मंदिर भी है?
दरअसल हैदराबाद से 220 किलोमीटर दूर खम्मम जिले में स्थित हनुमान जी का एक मंदिर खास वजह से प्रसिद्ध है। दरअसल इस मंदिर में हनुमान को उनके वैवाहिक रूप में उनकी पत्नी के साथ पूजा जाता है। इस मंदिर में हनुमान के साथ उनकी पत्नी सुवर्चला की प्रतिमा भी विराजमान है।
इन क्षेत्र में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी की पत्नी का नाम सुवर्चला है और वे सूर्य देव की पुत्री हैं। यहां पर हनुमानजी और सुवर्चला का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। अगर हम बात करे हनुमान विवाह की तो पाराशर संहिता में भी हनुमान जी और सुवर्चला के विवाह की कथा है।
यहां की मान्यता है कि जो भी हनुमानजी और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उन भक्तों के वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी नहीं थे दरअसल पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे…आइए बताते हैं इसके पिछे की पूरी कहानी।
तेलंगाना के खम्मम जिले में प्रचलित मान्यता का आधार पाराशर संहिता को माना गया है। पाराशर संहिता में उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी अविवाहित नहीं, विवाहित हैं। उनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री सुवर्चला से हुआ है।
संहिता के अनुसार हनुमानजी ने सूर्य देव को अपना गुरु बनाया था। सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्याएं थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान बजरंग बली प्राप्त करना चाहते थे। सूर्य देव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया, लेकिन शेष 4 विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया।
शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों। हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे, इस कारण सूर्य देव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। इस समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही। पहले तो हनुमानजी विवाह के लिए राजी नहीं हुए, लेकिन उन्हें शेष 4 विद्याओं का ज्ञान पाना ही था। इस कारण हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी।
जब हनुमानजी विवाह के लिए मान गए तब उनके योग्य कन्या की तलाश की गई और यह तलाश खत्म हुई सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला पर। सूर्य देव ने हनुमानजी से कहा कि सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है और इसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो। सुवर्चला से विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको।
सूर्य देव ने यह भी बताया कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे, क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी। यह सब बातें जानने के बाद हनुमानजी और सुवर्चला का विवाह सूर्य देव ने करवा दिया। विवाह के बाद सुवर्चला तपस्या में लीन हो गई और हनुमानजी से अपने गुरु सूर्य देव से शेष 4 विद्याओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया। इस प्रकार विवाह के बाद भी हनुमानजी ब्रह्मचारी बने हुए हैं।

हर साल बढ़ती है इस चमत्कारिक शिवलिंग की लम्बाई


महादेव के ऐसे बहुत से मंदिर मिल जाएगें जहां आए दिन कोई ना कोई चमत्कार होते रहते है और जो किसी ना किसी खास बात की वजह से प्रसिद्ध है। ऐसा ही एक अद्भुत मंदिर है छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में। यहां के मरौदा गांव में घने जंगलों के बीच एक प्राकृतिक शिवलिंग है जो की ‘भूतेश्वर नाथ’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस शिवलिंग के साथ जुड़ा हुआ है एक अद्भुत रहस्य।
दरअसल यह विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है। इसकी सबसे खास और सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है, हर साल इसका आकार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ये अपने आप में एक चमत्कार ही माना जाता है। इस चमत्कार की बदौलत ही ये मंदिर प्रसिद्ध है।
इसका आकार बदलना आज भी एक रहस्य बना हुआ है। यह जमीन से लगभग 18 फीट उंचा एवं 20 फीट गोलाकार है। राजस्व विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ रही है। इसका आकार बढ़ते-बढ़ते आज काफी बढ़ गया है।

शिवलिंग के पिछे यहां की मान्यता

इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाडी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मे घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने एवं शेर के दहाडनें की आवाज आती थी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने यह बात ग्रामवासियों को बताई।
ग्राम वासियों ने भी शाम को ये आवाजे अनेक बार सुनी। तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की, लेकिन दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्धा बढने लगी। और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे।
इस बारे में पारा गावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढती गई। जो आज भी जारी है। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है।
घने जंगलों के बीच स्थित होने के बावजूद यहां पर सावन में कावड़ियों का हुजूम उमड़ता है। इसके अलावा शिवरात्री पर भी यहां विशाल मेला भरता है। इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है। कई पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है।
Synopsis
Bhuteshwar Nath is known as the world's biggest natural Shivling. While the mystery behind these miraculous temples remain in question, there is another mystical. Its length increases by six to eight inches every year.

एक लाख छिद्रों वाला शिवलिंग, स्वयं लक्ष्मण ने की थी इसकी स्थापना



वैसे तो भगवान शिव के बहुत से शिवलिंग है जो प्रसिद्ध है जिनमें अमरनाथ और रामेश्वरम जैसे शिवलिंग शामिल है लेकिन, इस लक्षलिंग का अपना ही अलग महत्व है। आज हम आपको लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताएंगे जो की शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर खरौद नगर में स्थित है। खरौद नगर को प्राचीन काल के अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है।

रामायण काल से है इसका संबंध

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां रामायण काल में लंका विजय के बाद लक्ष्मण के कहने पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात ‘लक्ष्मणेश्वर महादेव’ की स्थापना की थी। रतनपुर के राजा खड्गदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। विद्वानों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण काल छठी शताब्दी के आस पास माना गया है।

पाताल से जुड़ा है ये शिवलिंग

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है जिसके बारे में मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसलिए इसे लक्षलिंग कहा जाता है। इन लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है जो की पातालगामी है क्योकि उसमे कितना भी जल डालो वो सब उसमे समा जाता है जबकि एक छिद्र अक्षय कुण्ड है क्योंकि उसमे जल हमेशा भरा ही रहता है।

ये भी है मान्यता

लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चले जाने की भी मान्यता है, क्योंकि कुण्ड कभी सूखता नहीं। लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट उपर है और इसे स्वयंभू लिंग भी माना जाता है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। सावन सोमवार, महाशिवरात्रि जैसे विशेष आयोजनों पर इस शिवलिंग में चावल के एक लाख दाने चढ़ाए जाने की प्रथा है। माना जाता है कि हर छिद्र के लिए चावल का एक दाना चढ़ाया जाता है।

क्या है मान्यता

इसके निर्माण की कथा यह है कि रावण का वध करने के बाद श्रीराम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा, क्योंकि रावण एक ब्राह्मण था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण रामेश्वर लिंग की स्थापना करते हैं। शिव के अभिषेक के लिए लक्ष्मण सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों से जल एकत्रित करते हैं।

लक्ष्मण ने की इसकी स्थापना

जल एकत्रित करने के दौरान लक्ष्मण गुप्त तीर्थ शिवरीनारायण से जल लेकर अयोध्या के लिए निकलते समय रोगग्रस्त हो गए। रोग से छुटकारा पाने के लिए लक्ष्मण ने शिव की आराधना की, इससे प्रसन्न होकर शिव दर्शन देते हैं और लक्षलिंग रूप में विराजमान होकर लक्ष्मण को पूजा करने के लिए कहते हैं। लक्ष्मण शिवलिंग की पूजा करने के बाद रोग मुक्त हो जाते हैं और ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्ति पाते हैं, इस कारण यह शिवलिंग लक्ष्मणेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। प्रति वर्ष यहां महाशिवरात्रि के मेले में शिव की बारात निकाली जाती है। छत्तीसगढ़ में इस नगर की काशी के समान मान्यता है कहते हैं भगवान राम ने इस स्थान में खर और दूषण नाम के असुरों का वध किया था इसी कारण इस नगर का नाम खरौद पड़ा।

रहस्यमयी कुआं जिसके अंदर से निकलती है रोशनी


दुनिया में ऐसी कई जगह मौजूद है जो अपने आप में रहस्यमयी नजर आती है। यहां तक विज्ञान भी इन घटनाओं का कोई निश्चित कारण नहीं जान पाए है। ऐसी ही एक जगह पुर्तगाल के सिन्तारा के समीप स्थित हैं, यहां पर एक रहस्यमयी कुआं है जिसकी खासियत यह है की इस कुएं की जमीन के अंदर से रोशनी निकलती है और बाहर की ओर आती है।

आज भी बना हुआ है एक रहस्य

हैरानी की बात यह है कि इस कुएं के अंदर प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में रोशनी कहां से आती है यह रहस्य है। इस रहस्य को आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं और इसके इस अद्भुत रहस्य को देख हैरान हो जाते हैं।

माना जाता है विशिंग वैल

दरअसल इस कुएं को विशिंग वेल माना जाता है। लोग इसमें सिक्का डालकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से उनकी इच्छाएं पूरी होती है। हालांकि, जो भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं, उनके बीच हमेशा यह सवाल उठता है कि कुएं के अंदर से आने वाली रोशनी कहां से आती है, लेकिन आज तक यह रहस्य अनसुलझा है।

जुड़े हुए हैं कई रहस्य

इस कुएं की गहराई लगभग चार मंजिला इमारत के बराबर है, जो जमीन के अंदर जाते हुए संकरी होती जाती है। लेडीरिनथिक ग्रोटा नाम का यह कुआं दिखने में उल्टे टॉवर की तरह है। इस कुएं के पास ही एक अन्य छोटा कुआं है। दोनों कुएं सुरंगो के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए है। यह कुआं क्यूंटा डा रिगालेरिया के पास स्तिथ है। क्यूंटा डा रिगालेरिया, यूनेस्को द्वारा संरक्षित वर्ल्ड हेरिटेज साइट है।

दिक्षा संस्कारों के लिए हुआ निर्माण

इस कुएं का निर्माण पानी को संगृहीत करने के उद्देशय से नहीं किया गया था। इसके बजाय इन रहस्यमयी टॉवर नुमा कुओं का प्रयोग गोपनीय दीक्षा संस्कारों के लिए किया जाता था।